Tuesday, November 19, 2013

पुष्कर मेला (राजस्थान)

बहुत ही यादगारी रहा मेले में कठपुतली शो 

18-11-2013 पर प्रकाशित 
Courtesy:INBMINISTRY//YouTube
As the renowned Pushkar fair kicked off on in the first week of November, it is giving a lifetime experience to the tourists. But most importantly, this annual fair brought back the traditional Rajasthan art form of puppetry to the minds of people, which by the passage of time was losing its existence.

Monday, April 15, 2013

राजस्‍थान में पक्षि‍यों के बचाव

15-अप्रैल-2013 18:43 IST
राजस्‍थान के भरतपुर अभयारण्‍य में पक्षि‍यों के बचाव के लि‍ए कदम उठाए गए 
Courtesy Photo
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने केवलादेव राष्‍ट्रीय उद्यान, भरतपुर, राजस्‍थान में पक्षि‍यों के बचाव के लि‍ए पानी की आपूर्ति‍ को बढाने के लि‍ए कई कदम उठाए हैं। इनका ब्‍यौरा नीचे दि‍या गया है:- 
1. गौवर्धन ड्रेन से केवलादेव राष्‍ट्रीय उद्यान को जल की आपूर्ति‍ करने के लि‍ए 65 करोड़ रूपये की लागत की परि‍योजना शुरू की गई। इसके तहत पाईप-लाईन बि‍छाने का कार्य पूरा हो चुका है तथा सि‍तंबर, 2012 के दौरान पार्क में पानी की पहुंच की जांच भी कर ली गई है। 
2. वर्ष 2010-11 एवं 2012-13 के दौरान पंचना बाँध से परंपरागत स्रोत के तौर पर क्रमश: करीब 216 मि‍लि‍यन क्‍यूबि‍क फीट एवं 234 मि‍लि‍यन क्‍यूबि‍क फीट पानी उपलब्‍ध कराया गया है। राज्‍य वन्‍य-जीव बोर्ड ने यह सि‍फारि‍श की है कि‍ पंचना बाँध से पानी की आपूर्ति‍ हर वर्ष की जाए। 
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वि.कासोटिया\यादराम/सुजीत – 1860

Sunday, February 3, 2013

बागवानी फसल बनी वरदान// -मनोहर कुमार जोशी*

31-जनवरी-2013 12:44 ISTराजस्थान के प्रयोगधर्मी और प्रगतिशील किसान लियाकत अली पर विशेष लेख
राजस्थान में सवाईमाधोपुर जिले की करमोदा तहसील के दोंदरी गांव के प्रयोगधर्मी और प्रगतिशील किसान लियाकत अली अपनी हर सफलता का श्रेय उद्यानिकी को देते हैं । अपनी पांच हैक्टेयर कृषि भूमि में से तीन हैक्टेयर पर उन्होंने अमरूदों का बाग लगा रखा है। उनके बगीचे में इस वर्ष अमरूदों की बम्पर पैदावार हुई है। छोटे-बड़े सभी पेड़ फलों से लदे हुये हैं। कई पेड़ों की डालें तो फलों के वजन से जमीन पर गिरी हुयी हैं। लेखक को फलदार बाग दिखाते हुये उन्होंने बतायी अपनी सफलता की कहानी - सुनते है उन्हीं की जुबानी.......

           हमारा पुश्तैनी पेशा खेतीबाड़ी है । मेरे पिता समीर हाजी परम्परागत खेती किया करते थे। पिता के इंतकाल के बाद मैं भी गेहूं, जौ, चना सरसों आदि की फसलें लेने लगा, लेकिन उससे कुछ खास हासिल नहीं हुआ । कभी ज्यादा सर्दी की वजह से फसलों को नुकसान होता, तो कभी पानी की कमी के कारण पर्याप्त सिंचाई के अभाव में अच्छी पैदावार नहीं होती। इससे भविष्य की जिम्मेदारियां अधर झूल में दिखाई देने लगी।
           ऐसी स्थिति में एक दिन मैं यहां के कृषि एवं उद्यान विभाग तथा स्थानीय कृषि विज्ञान केन्द्र के अधिकारियों से मिला। उन्होंने मुझे अमरूद का बगीचा लगाने की सलाह दी। मेरे लिये इनसे मिलना बहुत ही लाभप्रद रहा। उनके सहयोग एवं सलाह पर मैंने अमरूदों की खेती शुरू कर दी । नर्सरी से एक रूपये प्रति पेड़ के हिसाब से 300 पेड़ खरीद कर एक हैक्टेयर जमीन पर लगाये । बड़े होने पर इन पेड़ों पर अमरूद लगने शुरू हो गये, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । इससे हुयी आय ने उद्यानिकी फसल के प्रति मेरा उत्साह बढ़ाया और मैंने अपने बगीचे को एक हैक्टेयर से बढ़ाकर तीन हैक्टेयर में कर दिया । छह सौ पेड़ और लगाये । दूसरी बार लगाये पेड़ों के पौधे लखनऊ से लाया ।  यह पौधे इलाहाबादी, मलिहाबादी, बर्फ गोला एवं फरूखाबादी किस्म के थे तथा एल-49 से स्वाद में बढि़या व पेड़ से तुड़ाई के बाद ज्यादा समय तक तरोताजा रहने वाले थे।  नये पौधों से दो साल बाद फसल की पैदावार में वृद्धि हुयी। इससे ढाई लाख रूपये की आय हुई ।

           इस बार मैंने पैदावार बेचने का ठेका कोटा के एक फल व्यापारी को दिया है, लेकिन बम्पर पैदावार होने के बाद लगा कि यदि ठेकेदार के बजाय मैं खुद इसे बेचता तो कहीं ज्यादा लाभ में रहता। इस मर्तबा इस कदर पेड़ों पर फल लदे हैं कि फलदार पेड़ों की डालें झुक कर जमीन पर आ गयी है।

    फलों की तुड़ाई नवम्बर से चल रही है। यह सिलसिला मार्च तक चलेगा । अमरूदों की खेती मुझे एवं मेरे बेटों को रास आ गई है । एक हजार पौधे अपने बाग में और लगाये हैं। एक दो साल बाद इनसे भी आय शुरू हो जायेगी। वे बताते हैं ....महंगाई की मार उद्यानिकी फसल पर भी पड़ी है। शुरू में मुझे प्रति पौधा एक रूपये में मिला था, जबकि इसके बाद यही पौधा एक से बढ़कर चार रूपये का अर्थात चार गुना महंगा मिला। पिछले वर्ष लखनऊ से लाये गये पौधों की कीमत यहां पहुंचने तक लगभग 25 रूपये प्रति पौधा पड़ गई, लेकिन मुझे लगता है इस पौधों की किस्म अच्छी होने के कारण इसका लाभ मिलेगा।

           यहां की जलवायु हवा, पानी एवं मिट्टी अमरूद के पेड़ों को भी रास आ गई है तथा जो किसान बगीचे की अच्छी तरह सार-संभाल करता है, उसके लिये बगीचा सोना उगलता है । मैंने नये पौधों की रोपाई से पहले बकरी की मींगनी की खाद से बगीचे को भली-भांति संधारित किया था। समय-समय पर पेड़ों की देखभाल करता रहता हूं । पशुओं से पेड़ों एवं फसल की रक्षा के लिये बगीचे के चारों तरफ लोहे के मोटे तार वाली जाली की बाड़ लगा रखी है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में नील गायें हैं, जिस खेत में रात को वे घुस जाती हैं, उसकी फसल चोपट कर देती हैं।

           खेत एवं बगीचे में सिंचाई के लिये खेत पर कुआं एवं फार्म पौण्ड हैं, जिससे सिंचाई की कोई समस्या नहीं है। बूंद-बूंद और फव्वारा सिंचाई अपना रखी है, जो जरूरत के अनुसार हो जाती है। दूसरे किसान भाईयों को भी उनकी मांग पर फसल की सिंचाई के लिये पानी मुहैया करवाता हूं। मै किसान भाइयों को हमेशा कहता हूं कि आज हम लोग कोई एक प्रकार की खेती कर खुशहाल और समृद्ध नहीं बन सकते हैं । इसके लिये खेती किसानी के साथ-साथ कृषि के सहायक कार्य जैसे मुर्गीपालन, मछली पालन, पशुपालन, जो एक दूसरे पर निर्भर हैं, इन्हें अपना कर अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं।

           मैंने अपने खेत पर एक सौ फुट लम्बा, 70 फुट चैड़ा और 12 फुट गहरा फार्म पौण्ड बना रखा है। इसके निर्माण के लिये सरकार से अनुदान भी मिला था। सिंचाई के साथ-साथ पौण्ड में मत्स्य बीज डाल कर मछलीपालन कर लेता हूं। इसके लिये कोलकाता से शुरू में दस हजार मत्स्य बीज लाया था । एक किलो की मछली 80 से 100 रूपये में बिक जाती है । मैंने मत्स्य प्रशिक्षण विद्यालय उदयपुर से 2004 में ट्रेनिंग ली थी, जो मेरे काम आई । फार्म पौण्ड के किनारे प्रकाश पाश्‍र्व लगा रखा है, इससे फायदा यह है कि खेत में फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीट पतंगे रात को पानी मे गिर जाते हैं। इससे दोहरा लाभ होता है, फसल भी खराब नहीं होती और मछलियों का भोजन भी हो जाता है।

           अतिरिक्त आय के लिये खेत पर पांच-सात भैंसे बांध रखी हैं । एक भैंस हाल ही 46 हजार रूपये में बेची है। भैंसों से दूध, दही, घी मिल जाता है । उनका गोबर बायोगैस संयंत्र में काम आ जाता है । यह संयंत्र वर्ष 2007-08 में बनाया था। अपने खेत पर मुर्गीपालन भी करता हूं। ये पक्षी खेत में दीमक तथा हानिकारक कीड़ों को खाकर उन्हें नष्ट कर देते हैं । उनकी विष्टा खाद के रूप में काम आती है । कृषि के जानकार लोगों के मुताबिक इनकी बींट की खाद से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है । देसी मुर्गा पांच सौ से सात सौ रूपये में बिक जाता है। लियाकत अली के पुत्र इंसाफ कहते हैं । हमारे खेत पर मुर्गे-मुर्गियों और इनके चूजों की संख्या काफी हो गयी थी, लेकिन हाल ही में थोड़ी सी लापरवाही के चलते ये पक्षी वन्य जीवों के शिकार हो गये। अब कुछ मुर्गे-मुर्गीयां ही बची हैं। इनकी सुरक्षा के लिये जल्दी ही फार्म पौण्ड पर लोहे का जाल डालकर एक बड़ा पिंजड़ा बना रहे हैं।

           लियाकत भाई अपनी सफलता की सारी कहानी बयां करते हुये कहते हैं कि मुझे मान- सम्मान, धन-दौलत अमरूदों की उद्यानिकी फसल से ही मिला है। मेरे यहां कोई आये और बिना अमरूद खाये कैसे चला जाये । इसके लिये मैंने 20-25 अमरूदों के पेड़ अलग से छोड़ रखे हैं, ताकि अमरूदों का स्वाद आने वाला अतिथि चख सके। वे कहते हैं मुझे अनेक इनाम मिले हैं, लेकिन सबसे बड़ा सम्मान जयपुर में कृषक सम्मान समारोह में मिला । इससे मेरा और उत्साहवर्धन हुआ है ।(पसूका) (PIB) बागवानी फसल बनी वरदान// -मनोहर कुमार जोशी*
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*लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं

मीणा/बि‍ष्‍ट/शदीद -32पूरी सूची 31.01.2013

Friday, February 1, 2013

ई-गवर्नेंस के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार

01-फरवरी-2013 17:53 IST
जयपुर में 11-12 फरवरी को 16वां राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सम्मेलन 
प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग, भारत सरकार के इलैक्ट्रोनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग और राजस्थान सरकार को सूचना प्रौद्योगिकी और संचार विभाग के सहयोग से राजस्थान की राजधानी जयपुर में 11-12 फरवरी, 2013 को 16वां राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है। 

ई-गवर्नेंस पर आधारित राष्ट्रीय सम्मेलन के जरिये नीति निर्माताओं, व्यावसायिकों, उद्योग जगत की अग्रणी हस्तियों और शिक्षाविदों को कार्य-योग्य रणनीतियों के बारे में विचार-विमर्श करने और सुझाव देने के लिए एक मंच उपलब्ध होता है। इस परिदृश्य में ‘ खुली सरकार की ओर’ नामक मूल विषय पर आधारित 16वां राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सम्मेलन से हमें अभिनव प्रौद्योगिकी के माध्यम से सामाजिक, वित्तीय और डिजिटल सम्मिलन एवं शासन में सुधार की दिशा में कारगर रणनीतियां तैयार करने में मदद मिलेगी। 

ई-गवर्नेंस से संबंधित पहलुओं के कार्यान्वयन में विशिष्टता दर्शाने के लिए भारत सरकार का प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करता है। यह पुरस्कार कई श्रेणियों में विभाजित हैं और प्रत्येक श्रेणी में स्वर्ण, रजत और कांस्य के प्रतीक चिन्ह भेंट किये जाते हैं। (PIB)

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वि.कासोटिया/सुधीर/मीना-411